जरा हौसला कर मैंने,
जो कदम निकाला डेहरी पर
मेरे हिस्से की जमीं ही,
मुझसे मुँह मोड़ लेती है|
कही दूर उड़ जाउ एक दिन
पर चिढ़कर किस्मत
मेरे ही पंखों को नोच देती है।
मालूम नही मुझे के कैंसे,
पहुँचू मै अंजाम तलक
जिन राहो को छोड़ती हूँ ,
दिशायें फिर वही मोड़ देती है।
मुझे वो आसमान का
नीला टुकड़ा भी नही दिखता
रिवाज- ए- दुनिया मुझे
चारदीवारी में समेट देती है । प्रीती