आज हाथ पड़ गया अचानक ही
उन सूखी पुरानी यादों पर
जो किताब के पन्नो के बीच में
अपनी महक समेटे बैठी थी
हाँ ये वही गुलाब का फूल है!!
मुझे याद है आज भी वो शाम
जब ये मेरे बालों में तुमने
अपने हाथों से सजाया था
और मै बस शरमा कर
वही सिमट सी गयी थी
जिसे मैंने माँ से छिपा
के किताबों में तो कभी
कपड़ो के बीच में रखा था
जिसे मैंने कभी आँखों पे तो
कभी दिल में सजाके रखा था
जिसने मेरा जीवन काटों से
सजाकर रख दिया
मेरी मासूम से ख्वाहिशों को
जिसने जलाकर रख दिया
मुझे देखकर अचानक से
जब तुमने नज़रें चुरायी थी
भीड़ में थी मै खडी हुई
पर क्यूँ चारों तरफ तन्हाई थी
तब का दिन था और आज का दिन है
अरसे बाद आज तुम मेरे साथ हो
3 टिप्पणियां:
वाह क्या बात कही है ... आपने इन पंक्तियों में अनुपम भाव लिये उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - जीवन हर पल बदल रहा है पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
wah, bahut sundar... behtareen...
anupam!!
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