ये मंजर भी बड़ा ही दिलचस्प और नायाब है
दरिया है आखों में फिर भी कोई ख्वाब जलता है
..
भूल तो गया उसका साया भी उसको यहाँ
हैरानी की बात है,कोई है जो परछाई सा चलता
है ...
किस्मतों की साजिश होगी के यादाश्त
गयी उनकी
वरना गरीबो में भी कही कभी कोई राजा पलता है
...
मुस्तकिल खुशमिजाजी का न अफ़सोस कीजिये
उसके चेहरे पर भी रोज कुछ शाम सा ढलता
है....
गिरता उन्हें देख भूल गये जोर से ठहाके
लगाने वाले
बचपन में गिरे थे कई बार तभी आज कदम संभलता
है....
पत्थर से है हालात तो क्या कोशिश कर के
देखेंगे सुना है के इस जहाँ में आग से वो लोहा भी
पिघलता है...
तुम यूं ही न रहोगे सदा न हम रहेंगे ऐसे ही,
वक़्त ही तो एक ऐसा है जो सभी का बदलता है
....
प्रीती
8 टिप्पणियां:
लाजवाब...बहुत ही भावपूर्ण कविता...बहुत ही अपनी सी लगी पढ़कर..आभार
Bahut khub
"भूल तो गया उसका साया भी उसको यहाँ
हैरानी की बात है,कोई है जो परछाई सा चलता है.."
Bahut hi badhiya....Umda..! Kyaa baat hai Preeti ji..!!!
--Sudeep
thank u so much for your comment n liking my poem.
thank you so much mam
shukriya dost ...
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
प्रीति ,
सोच के गहरे भूतल तक लेजाता शीर्षक ... !
** दरिया हैं आंखों में, फिर भी ख्याब जलता है ! **
और उपर्युक्त शीर्शक ने पूरी रचना में वही प्रभाव बना रखा !
सरस ! भावपूर्ण ! अत्यंत ही ह्र्दयस्पर्शी !
नमन अभिव्यक्ती को और तुम्हारे सृजनशील व्यक्तीत्व को !
सादर
अनुराग
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