सोमवार, 16 दिसंबर 2013

रिवाज- ए- दुनिया...


जरा हौसला कर मैंने, 
जो कदम निकाला डेहरी  पर 
मेरे हिस्से की जमीं ही,
  मुझसे मुँह मोड़ लेती है|  

मै सोचती हु बेख़ौफ़ हो 
कही दूर उड़ जाउ एक दिन 
पर चिढ़कर किस्मत
मेरे ही पंखों को नोच देती है। 
 
मालूम नही मुझे के कैंसे, 
पहुँचू  मै अंजाम तलक 
जिन राहो को छोड़ती हूँ ,
दिशायें फिर वही मोड़ देती है। 
 
मुझे वो आसमान का
 नीला टुकड़ा भी नही दिखता 
रिवाज- ए- दुनिया मुझे  
चारदीवारी में समेट  देती है । प्रीती 

12 टिप्‍पणियां:

Neeraj Neer ने कहा…

बहुत बढियां एक स्त्री की व्यथा को समेटती सुन्दर रचना ..

बेनामी ने कहा…

behad khoobsurat .. here comes the real preeti after looooooong time... you create a very thoughtful and touchy canvas of human emotions.. it happens only when we got the heart to feel the pain of others and ten mould the same into the lines.. too bful.. Jai ho..:)

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

आपकी यह पोस्ट आज के (१७ दिसम्बर, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - कैसे कैसे लोग ? पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई

Unknown ने कहा…

बेहद भावपूर्ण व मर्मस्पर्शी भाव अभिव्यकती !

मैं सोचती हूँ बेखोफ़ हो, कहीं दूर उड एक दिन!
पर चिड कर किस्मत, मेरे पंखो को नोच देती है!

बेहद भावप्रधान लेखन .. पंक्ती दर पंक्ती भाव ने प्रसार लिया है! हर मन को छूयेगी अभिव्यक्ती क्यूँकि हर कोई कभी हताश हो कर ऐसा सोचने पर मजबूर होता है! राजू भाईया कहते हैं लेखनी यूनिवर्स फील की हो .. वैसे ही इस अभिव्यक्ती में भाव हैं .. जो जिधर से पढे , उसे बात अपनी सी लगे !

नमन आपके स्रजनशील व्यक्तीत्व को बच्चा !

मेरी दुआ है यही की किस्मत अपनी बनाये !

सुन्दर सपनों से भी सुन्दर जहाँ तू बनाये !

नकामयाबी नकारत्मकता न मालूम हो कभी

तो इस तरह से सफल हो जीवन प्रीत निभाए !

सादर .सस्नेह !

: अनुराग त्रिवेदी - जबलपुर

Misra Raahul ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-12-2013) को "शक़ ना करो....रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1476" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नव वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

सादर...!!

- ई॰ राहुल मिश्रा

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहतरीन शब्द चयन और बहुत ही सशक्त भावाभिव्यक्ति ! अति सुन्दर !

अभिषेक शुक्ल ने कहा…

दर्द को जीवंत किया है आपने शब्दों के माध्यम से.....बेहतरीन.....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मन मयूर तो उड़ना चाहता है पर समाज की दीवारी ऐसा होने नहीं देती ...
दिल के दर्द को लिखा ही ...

Dr. Preeti Dixit ने कहा…

आपका बहुत बहुत धन्यवाद राहुल जी ...मेरी रचना को और लोगो तक पहुचाने के लिए..नव वर्ष आप के लिए ढेरों खुशियाँ लेकर आये यही कामना करती हु मै इश्वर से !! सधन्यवाद !

Dr. Preeti Dixit ने कहा…

सह्रदय आभार आपका आपके वक़्त और आपके शब्दों के लिए!!!

Dr. Preeti Dixit ने कहा…

धन्यवाद आपका बहुत बहुत !!

Dr. Preeti Dixit ने कहा…

जी सही कहा आपने कुछ हद तक वही मनोस्तिथि रही है इसे लिखते वक़्त ..आपका तहे दिल; से शुक्रिया !!!