जाने कौन हूँ मै,मुझे जाने किसकी तलाश है
लगता है मेरे ही हाथो में मेरे ही मुकद्दर की लाश है ....
मेरे अल्फाज है ,मेरी जुबां में मेरी ही बोलियाँ भी
मेरा साथ नहीं देती जाने क्यूँ खफा मेरी ही आवाज है ....
मेरी ही तस्वीर कोरी सी, मेरे ही साज अधूरे से
जैसा मेरा कल था जाने क्यूँ वैसा ही मेरा आज है ....
आइना देखकर तो पहचाना न गया वो शख्स
मुझे अजनबी सा लगता, मेरा ही हर अंदाज है ...
जहीर भी है कई, जामिन भी मेरे इसी शहर में
इतने लोगों में फिर भी गम़गुस्सार मेरा ही मिजाज है ..
प्रीती....
10 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन काश हर घर मे एक सैनिक हो - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
धन्यवाद आपका बहुत बहुत आभार रचना को इतना सम्मान देने के लिए !!
बहुत खूब .... अच्छे शेर हैं गज़ल के ...
वाह ... बेहद लाजवाब रचना
nice composition.... a good song can be develop with this lyrics and a soft-silent tune...
धन्यवाद आपका
thanks a lot
बहुत सुन्दर |
बहुत अच्छी ग़ज़ल....
दाद कबूल करें!!
अनु
बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
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