गुरुवार, 29 मार्च 2012

नींद तू आदत से मजबूर है

फिर मेरी आखों से दूर है ए नींद तू आदत से मजबूर है
मुझको अपना दुश्मन ना समझ इधर आकर करीब बैठ मेरे 
उसके खयालो से तोड़ जरा वास्ता वो  नहीं है अपनों में तेरे !
एक बात जरा तुझसे है करनी तू अपने कान इधर ही लगाना 
तुम मेरी हो या उसकी हो क्यूँ उसके साथ ही तेरा आना जाना !
तुम्हे पता है इन आखों पे जब हौले से तुम सजती हो 
भर लेती आलिंगन में पलकें अभिमान ज्यूँ तुम तजती हो !


देखो कितनी बेजारी से ये कैसे तुम्हे पुकार रही 
आकर इन्हें गले लगा लो ये रस्ता तेरा निहार रही !
देखो अब तुम आ भी जाओ कही रूठ ना जाएँ आखें तुमसे 
बंद कर दिए पलकों ने दरवाजे तो फिर न शिकायत करना हमसे !
हाँ  मुझको खबर है ये भी तू इंतज़ार में किसी के  चूर है 
पर ये बात क्यूँ भूलती है पगली वो शख्स बड़ा मगरूर है !
ना छोड़ कर जा तू ऐसे, जाना तेरा बड़ा मशहूर है 
आकर फिर से गले लगा ले इन आखों का देख छिन गया नूर है
                                                                              ......प्रीती 

शनिवार, 24 मार्च 2012

नैन परिंदे


नैन परिंदे ख्वाबो के लगा  पर अब नींद के बादल पर उडते है 
अंधियारे और उजियारे में वो ख्वाब का दाना चुगते है ...

इक पेड़ मिला फिर हरा भरा सा और इक सुखी टहनी भी 
गुजरे कल के कुछ सूखे पत्ते और कोपलें नए कल की सहमी भी 

आसूं की ओस का गीलापन और वक़्त की लूँ की गर्मी भी 
रंग बदलती ज़िन्दगी से वो नैन परिंदे मिलते है ...



कही बिछड़ने के  तूफ़ान थे तो कही मिलन की सर्दी भी 
छूटते हुए  कुछ हाथो का नशा और नए कदमो के चहलकदमी भी 

पतझड़ के जाने  का था अंदेशा बहारो के आने की गहमागहमी भी
उम्मीद की सुखी टहनी पर फिर प्यार के मौसम खिलते है....

बदली हुई सी फजां की रंगत रेशम सी हवा की नरमी भी
कलियों की शर्मीली शोखी भवरो की वो सरगर्मी भी 

नादान दिल की हसरत और खामोश लफ्जों की बेरहमी भी 
घास फूस की यादें लेकर फिर नया घरौंदा बुनते है ....

नैन परिंदे ख्वाबो के लगा  पर अब नींद क बादल पर उडते है.
अंधियारे और उजियारे में वो ख्वाब का दाना चुगते है .   

    प्रीती बाजपेयी

wo dekho.....



वो चुप रहकर भी देखो अपनी बात रखता है 

मै चलती हू तो कोई कदम मेरे साथ रखता है,

यूँ ही नहीं मिलती सुबह की रौशनी सबको
कि जलता है सूरज खुद में आग रखता है,
बड़ा मगरूर होकर परिंदा उङ गया परिंदा लेकिन 
घरौंदे में अभी तक कोई उसकी राह तकता है,
शहर में हो गया फिर किसी का क़त्ल कल देखो 
मगर फिर भी शहर जाने कि कोई चाह रखता है ,
धुँआ उड़ा था लगी आग जल गयी फसल 
महीनो से वो केवल चूल्हे में राख रखता है,


 
कही ये राज न खुले कि वो नया है शहर में 
इसी दर से शहर सी अदाए साथ रखता है, 

पसीना आ रहा सोच उलझे बालो जैसी हो रही 

मगर ना प्यार से कोई इक बार हाथ रखता है,

यूँ तो हर कोई मालिक है मगर बस फर्क है इतना

किसी के  पास है पतझड़ तो कोई बहार साथ रखता है,

बड़ा मजबूर है इंसा के पड़ के प्यार में गुनाह 

करता है और ना वजह साथ रखता है ,

भले टूटे हो हज़ारों पर सायद इस बार पूरा हो

इसी चाहत में वो पलकों पे फिर से ख्वाब रखता है .........

wo puchte hai.......


meri tabiyaat nasaaz kark wo mera haal puchte hai...

uljha kar khyaalo me mera apne baare me khayaal puchte hai...


fursat hume kab thi chiraag bhi apne aashiyane me jalane ki..

 jala kar gharounda hamara aag lagane waale ka naam puchte hai..


kar baitha khudkushi koi kark mohabbat unse....

kis baat par hungaama aur kis baat par itna bawaal  puchte hai...


masrufiyat thi fir bhi sanjeeda the hum unhik khyaalo me...

wo fursaato me hi sirf humse hamaraa likha kalaam puchte hai...

 

mai unko apni har saans me lapete hue hu...

wo  mere dil tak pahuchne k raaste tamaam puchte hai..


ranjishe unse hui jinki muhabbat ko thukraaya...

wo  jalkar mujse mere chahne wallo k kaam puchte hai..,


kai roj hue kuch thikaana nahi apni bhookh pyaas ka.....

kaisi gujri meri raat aane waale kal ka intezaam puchte hai....


unse kah do k zakhmo pe namak chidkana asaan hai..

kis baat ka lete hai wo intekaam unse aaj ye sawal puchte hai.....  preeti ...



उम्मीद

उलझे हुए सवालों का जवाब चाहिए 
क्या खोया क्या पाया अब हिसाब चाहिए 
सब्र का बाँध टूट गया बिखरने लगे किनारे 
जो समेट ले सैलाब को अब वो हाथ चाहिए ...
झुका गए इतना के  हस्ती ही मिट गयी 
की फिर से जीने को उम्मीद की सौगात चाहिए ...
राज कई दफन है इस इस टूटे हुए दिल में 
जो बात सके उनको ऐसा कोई हमराज़ चाहिए ....
 

दोस्तों की तो महफ़िल सजी थी ,
पर उनके जैसा कोई ना मिला
हमे तो फिर से वही दोस्ती और उनका अंदाज़ चाहिए... 
हर शख्स फिक्रमंद है दामन बचाने में  
इस जख्मी राहगीर को एक गवाह चाहिए ....
अब शामे ज़िन्दगी में उनकी कमी खलने लगी 
मिल जाए जिन सवेरो में वो उस खुबसूरत 
दिन का हमें तो आगाज चाहिए.........................

गुरुवार, 15 मार्च 2012

लगे कभी

लगे कभी सब कुछ पाया सा , कभी लगे सब खाली सा 
इक सोच में डूबी रहती हू, खुद से ही  झगड़ती रहती हू 
घुटनों पे अपने सर को टिकाकर, जाने कहा विचरती हू 
कभी लगे सब सच्चा सा, कभी लगे सब  कहानी सा 
मेरा अतीत मेरा पीछा जाने  क्यूँ नहीं छोड़ता 
मुरझाये हुए इस फूल को क्यूँ कोई नहीं तोड़ता 
कभी लगे होठों की हँसी कभी आखों में पानी सा 
इंतज़ार है अब तो बारिश का के शायद खुल के रो पाऊ
मिला नहीं जो मेरा था के शायद अब उसको खो पाऊ
कभी लगे के उम्र बीत गयी कभी लगे जवानी सा 
बहार आई तो सहम गया मन के अब पतझड़ भी आएगा 
मिली आज जो खुशियाँ है कल कोई और छीन ले जाएगा 
कभी संभलते हुए कदम तो  कभी दिल की मनमानी सा 
यादों के  बादल हर दिन और हर पल घटाओं से छा जाते है 
सूखी गालो की धरती को वो अक्सर भिगों कर जाते है 
कभी गौतम के सधे कदम तो कभी हाल मीरा दीवानी सा 
ऐसे खुद को रोज समझाना बना कर कोई नया सा बहाना 
खुश हू मै उसके बिना नहीं उससे अब कोई भी याराना 
कभी लगे दिलासा है कभी लगे खुद से ही बेईमानी सा 
प्रीती बाजपेयी