शनिवार, 31 मई 2014

मर्दानगी या हैवानियत ...

तूने ही कोशिशे की और
 तुझसे ही ना संभाला गया
ये मर्दानगी का भूत क्यूँ
तुझसे ही निकाला ना गया
क्या यही है तुम्हारी मर्दानगी 

की खुद पे ही काबू नहीं
रौंद डाला मासूम बचपन को 
और तुमको शर्म भी नहीं
मै कहती हूँ  जला डालो
 खुद को तुम ही ज़िंदा
सारा समाज तुम्हारी
इस हरकत पर शर्मिंदा
पर तुम्हे कहा परवाह है किसी की
तुम्हे तो बस तबाही आती है
किसी मासूम की बर्बादी आती है|
कैसे मर्द हो तुम
नहीं तुम मर्द नहीं
तो तुम्हें क्या नाम दो
नहीं हिजड़ा कहके मै
हिजड़ो के नाम को
 कलंकित नही करुंगी
 वो मासूम जिदगियाँ
नही तबाह करते

इंसान कहलाने लायक
 तो तुम बिलकुल भी नहीं
तो क्या तुम्हे जानवर कहूँ  
नहीं जानवर भी इंसानों से बेहतर है
तो तुम्हे क्या नाम दू इसी पेशोपस में हूँ 
नहीं तुम नाम देने के  लायक नही हो
क्यु के नाम तो जीवन को देते है
और तुम जीवन नही हो मृत्यु हो
किसी और की नही स्वयं की मृत्यु
आदम और इंसानियत की मृत्यु
तो मै तुम्हे नाम देती हु मृत्यु........|
                                                            प्रीती 

शुक्रवार, 30 मई 2014

आदतन मजबूर !!!!



त’अज्जुब न कर मेरी मेरी नजाकत  पर तू
मै बेदर्द नदी हूँ वो, जो पत्थर भी काट दूँ !!


फजल का हमारी ये भी नमूना देखिये कि
आब-ए-चश्म उसकी बातों  में ही झांक लू !!

इफ़्फ़त के नाम पर बार- बार परखा मुझे
नाकस लोगो मै तुमसे अपना हिस्सा आज लूँ  !!

खैर ये बाते तो सिर्फ कहने के खातिर ही होती है
दो लफ्ज तेरे अत्फ़ के, औं मै हर ख़ुशी तुझसे बाट लूँ !!

तू इकबाल कर दे अगर  इखलास का अपने
बावरी मोरनी बन कर मै आज नाच लूँ !!
                                                                  प्रीती


( फजल= टैलेंट , आब-ए-चश्म = आसूं, इफ़्फ़त = सतीत्व, नाकस= घटिया, अत्फ़ = प्रेम ,  इख्लास = प्यार, इकबाल= इकरार, )