कुछ ख्वाब भर के आँखों की डिबिया में बंद किये बैठी हूँ मै, जाने कब ये पलकों के परदे खुल जाए ..और ये ख्वाब दुनिया को दिख जाएँ.......
बुधवार, 5 दिसंबर 2012
गुरुवार, 29 नवंबर 2012
आज रात के तकिये से
आज रात के तकिये से कुछ हिसाब उसे चुकाना था
नींद नयी नयी सी थी पर उसका ख्वाब वही पुराना था
उँगलियों में कोई दर्द छिपा था वो मुठी बांधें बैठी थी
किसी बात से खफा थी पलकें वो चुप्पी साधें लेटी थी
कितनी थपकी दी थी खुद को ,बार बार समझाती थी
उसे नींद है आ रही फिर भी उठ उठ बैठ वो जाती थी
झूठी तसल्ली के मौसम भी बरसे थे कई बार वहाँ
बिस्तर में बेचैनी भी मिलती थी अक्सर मुफ्त यहाँ
अनचाहे से ख्वाब को आँखों से अपनी मिटाना था ..
आज रात के तकिये से कुछ हिसाब उसे चुकाना था।।
प्रीती
शनिवार, 20 अक्टूबर 2012
मै परजीवी हू,परजीवी हू ,बस परजीवी हू मै!
परजीवी हू, परजीवी हू ,बस परजीवी हू मै!'
ना किसी काम की, ना किसी काज की
सौ मन आनाज मै खाती हू,
मै नीरीह बहुत ,लाचार बहुत
बस ऐसे ही जिए मै जाती हू...
मेरी रोटी रहम की है और
कपड़े मेरे किसी वहम के है
जब हाथ फैलाती हू तो मुझ
पर भी कुछ तो गुजरती है.....
मै परजीवी हू,परजीवी हू ,बस परजीवी हू मै!
मेरी चादर बहुत ही छोटी है
और सपने बहुत ही लम्बे है,
इस चादर में इन सपनो को
हां बहुत सी उलझन होती है...
मै हस्ती ही रहती हू हमेशा
पर दिल में कही कोई रोती है
मेह्नत पे बड़ा भरोसा था ,
पर लगता है किस्मत भी कुछ होती है
मै परजीवी हू,परजीवी हू ,बस परजीवी हू मै!
मांग मांग कर अब तक मैंने
इतनी बार क़त्ल किये है खुद के
जिन्दगी जैसे एक क़र्ज़ हो मुझ पर
इतने एहसान है मुझपे सबके....
हां कह दो तुम भी सवाल अपना
की मुझे शर्म नहीं क्यूँ आती है
सांसें मेरी क्यूँ चुल्लू भर पानी में
नहीं डूब मर जाती है.....
के क्यूँ मै परजीवी हू ? के क्यूँ मै परजीवी हू
मेरी आँखों में भी आंसू है
शर्मिंदगी मुझे भी होती है
जब दौड़ -दौड़ के इस रेस में
जीत कभी ना होती है!
हर बार कही कुछ कमी हो गयी
हर बार मै पीछे छुट गयी ,
कही किसी ने लूटा मुझको तो
कभी लकीरे रूठ गयी,
मै थक गयी हू, अब हार गयी हू
पर जीना मुझको अब भी होगा
किस्मत कितना भी हाथ छुड़ाए
मुझे फिर भी जिंदगी को पकड़ना होगा
मै फिर से लड़खड़ा के गिर जाती हू..
फिर से किसी की थपकी मांगू
फिर से किसी कन्धा चाहू ...
मै फिर परजीवी बन जाती हू
बस परजीवी ही रह जाती हू
मै परजीवी हू,परजीवी हू ,बस परजीवी हू मै!
...प्रीती
शनिवार, 22 सितंबर 2012
फूटकर रोया बहुत
जिंदगी अरमानो की किताब बना ली थी उसने
और आज पढने बैठा तो फूटकर रोया बहुत …
मिटटी के ढेलो से लेकर कागज की कश्ती तक
दिन के झमेलों से लेकर रात की मस्ती तक
सब कुछ छोड़ा था उसने उसको पाने के लिए
और आज वो भी न मिली तो फूटकर रोया बहुत …
यूँ तो उसे अच्छा न लगा शहर मेरा
मेरी बदनाम गलियों से दूर तक कोई नाता न था
उसको बदनामी मिली जब अपने ही घर में
आज मेरी डेहरी पे आया तो फूटकर रोया बहुत …
तमाम जिंदगी उसने रोकर गुजार दी
सोचा था की सब इकठे ही हसेगा
पर इस कदर वो आदतन मजबूर हो गया
की आज हसने चला तो फूटकर रोया बहुत
आखिरी पन्ने पे उसे राख मिल गयी
जिंदगी के पन्नो पे अपनी ही लाश मिल गयी
बंद कर दी किताब मूँद ली आखें
पर था सोया नहीं …आज बहुत दिनों के बाद
वो फूटकर रोया नहीं …….
-प्रीती -
शुक्रवार, 7 सितंबर 2012
....
किसका था कुसूर ,मै कुछ कह नहीं सकती
जिन्दा होकर पत्थर सी सब सह नहीं सकती
कुछ तो मुझको करना ही होगा
बिखरना नहीं, अब संभलना होगा ....
हर उस रंग को चुन बैठी जिनका मेरी
उजली तस्वीरों से कोई वास्ता न था ...
हर उस लकीर को पकड़ बैठी जिनका
मेरे हाथों में कहीं भी रास्ता न था ...
हर उस रास्ते को ही चुन बैठी जिन पर
कभी ना जाने की खायी थी कसम ....
अपने से कर बैठी थी दुश्मनी और
गैरों से मांग रही थी अपनापन .....
इस सोच ने ही जाने क्या-क्या कर डाला
चली थी मै बदलने दुनिया को , ये देखो
इस दुनिया ने मुझको ही बदल डाला ......प्रीती
इस दिल को जाने किसकी जुस्तुजू हो बैठी
हम यूँ ही खड़े होकर हाथ मसलते रह गए
वो जाने क्या क्या हमसे कह रही थी
इशारों इशारों में , रास्ता रोक कर खड़ी थी मेरा
इतने ख्वाब सजाये हुए थे , लाख डराया उसने
उन ख़्वाबों के टूट कर बिखरने का
पर ना जाने क्यूँ ये बावरा मन
कुछ सुनने को राजी न था
अपनी जिद को रंगत देती हुई , खुद को बोतां हुआ
लम्हों की तस्वीरों में ,बंजर धरती की जागीरों में
शनिवार, 5 मई 2012
UMMEED.....
by Preeti Bajpai on Tuesday, April 10, 2012 at 8:07pm ·
तमाम उम्र गुजार दी जिन्होंने दुआ में हाथ उठाने में
आज उम्र के कर्जदार होकर जैसे खुशियाँ चुका रहे हो
शाम दर शाम हर रात के ढलने की ख्वाहिश मन में पाले
जैसे कितने ही रोज हुए हो न देखे हो सुबह के उजाले
धुंध हुई जैसे ही कोई किसी ने कसकर पकड़े थे हाथ
स्याह सी कोई आखों के नीचे सूखी नींद आसुओं के साथ
अब जरा इंतज़ार में बैठे है के सुकून अभी है आने वाला
हाथ मिलाकर गले लगाले शायद है कुछ मिलने वाला
अब ये समझाए भी तो कैसे की खटखटा के किस्मत को
हाथ से बहुत जल्द जाने क्यों झाड़ देती है ये हिम्मत को.
.
पर उम्मीद अब भी कायम है ..और कायम ही रहेगी तब तक
इंसान बैठ नहीं जाता अपनी आखिरी बिस्तर पर जब तक..
गुरुवार, 29 मार्च 2012
नींद तू आदत से मजबूर है
फिर मेरी आखों से दूर है ए नींद तू आदत से मजबूर है
मुझको अपना दुश्मन ना समझ इधर आकर करीब बैठ मेरे
उसके खयालो से तोड़ जरा वास्ता वो नहीं है अपनों में तेरे !
एक बात जरा तुझसे है करनी तू अपने कान इधर ही लगाना
तुम मेरी हो या उसकी हो क्यूँ उसके साथ ही तेरा आना जाना !
तुम्हे पता है इन आखों पे जब हौले से तुम सजती हो
भर लेती आलिंगन में पलकें अभिमान ज्यूँ तुम तजती हो !
देखो कितनी बेजारी से ये कैसे तुम्हे पुकार रही
आकर इन्हें गले लगा लो ये रस्ता तेरा निहार रही !
देखो अब तुम आ भी जाओ कही रूठ ना जाएँ आखें तुमसे
बंद कर दिए पलकों ने दरवाजे तो फिर न शिकायत करना हमसे !
हाँ मुझको खबर है ये भी तू इंतज़ार में किसी के चूर है
पर ये बात क्यूँ भूलती है पगली वो शख्स बड़ा मगरूर है !
ना छोड़ कर जा तू ऐसे, जाना तेरा बड़ा मशहूर है
आकर फिर से गले लगा ले इन आखों का देख छिन गया नूर है
......प्रीती
शनिवार, 24 मार्च 2012
नैन परिंदे
नैन परिंदे ख्वाबो के लगा पर अब नींद के बादल पर उडते है
अंधियारे और उजियारे में वो ख्वाब का दाना चुगते है ...
इक पेड़ मिला फिर हरा भरा सा और इक सुखी टहनी भी
गुजरे कल के कुछ सूखे पत्ते और कोपलें नए कल की सहमी भी
आसूं की ओस का गीलापन और वक़्त की लूँ की गर्मी भी
रंग बदलती ज़िन्दगी से वो नैन परिंदे मिलते है ...
कही बिछड़ने के तूफ़ान थे तो कही मिलन की सर्दी भी
छूटते हुए कुछ हाथो का नशा और नए कदमो के चहलकदमी भी
पतझड़ के जाने का था अंदेशा बहारो के आने की गहमागहमी भी
उम्मीद की सुखी टहनी पर फिर प्यार के मौसम खिलते है....
बदली हुई सी फजां की रंगत रेशम सी हवा की नरमी भी
कलियों की शर्मीली शोखी भवरो की वो सरगर्मी भी
नादान दिल की हसरत और खामोश लफ्जों की बेरहमी भी
घास फूस की यादें लेकर फिर नया घरौंदा बुनते है ....
नैन परिंदे ख्वाबो के लगा पर अब नींद क बादल पर उडते है.
अंधियारे और उजियारे में वो ख्वाब का दाना चुगते है .
प्रीती बाजपेयी
wo dekho.....
वो चुप रहकर भी देखो अपनी बात रखता है
मै चलती हू तो कोई कदम मेरे साथ रखता है,
यूँ ही नहीं मिलती सुबह की रौशनी सबको
कि जलता है सूरज खुद में आग रखता है,
बड़ा मगरूर होकर परिंदा उङ गया परिंदा लेकिन
घरौंदे में अभी तक कोई उसकी राह तकता है,
शहर में हो गया फिर किसी का क़त्ल कल देखो
मगर फिर भी शहर जाने कि कोई चाह रखता है ,
धुँआ उड़ा था लगी आग जल गयी फसल
महीनो से वो केवल चूल्हे में राख रखता है,
कही ये राज न खुले कि वो नया है शहर में
इसी दर से शहर सी अदाए साथ रखता है,
पसीना आ रहा सोच उलझे बालो जैसी हो रही
मगर ना प्यार से कोई इक बार हाथ रखता है,
यूँ तो हर कोई मालिक है मगर बस फर्क है इतना
किसी के पास है पतझड़ तो कोई बहार साथ रखता है,
बड़ा मजबूर है इंसा के पड़ के प्यार में गुनाह
करता है और ना वजह साथ रखता है ,
भले टूटे हो हज़ारों पर सायद इस बार पूरा हो
इसी चाहत में वो पलकों पे फिर से ख्वाब रखता है .........
wo puchte hai.......
meri tabiyaat nasaaz kark wo mera haal puchte hai...
uljha kar khyaalo me mera apne baare me khayaal puchte hai...
fursat hume kab thi chiraag bhi apne aashiyane me jalane ki..
jala kar gharounda hamara aag lagane waale ka naam puchte hai..
kar baitha khudkushi koi kark mohabbat unse....
kis baat par hungaama aur kis baat par itna bawaal puchte hai...
masrufiyat thi fir bhi sanjeeda the hum unhik khyaalo me...
wo fursaato me hi sirf humse hamaraa likha kalaam puchte hai...
mai unko apni har saans me lapete hue hu...
wo mere dil tak pahuchne k raaste tamaam puchte hai..
ranjishe unse hui jinki muhabbat ko thukraaya...
wo jalkar mujse mere chahne wallo k kaam puchte hai..,
kai roj hue kuch thikaana nahi apni bhookh pyaas ka.....
kaisi gujri meri raat aane waale kal ka intezaam puchte hai....
unse kah do k zakhmo pe namak chidkana asaan hai..
kis baat ka lete hai wo intekaam unse aaj ye sawal puchte hai..... preeti ...
उम्मीद
उलझे हुए सवालों का जवाब चाहिए
क्या खोया क्या पाया अब हिसाब चाहिए
सब्र का बाँध टूट गया बिखरने लगे किनारे
जो समेट ले सैलाब को अब वो हाथ चाहिए ...
झुका गए इतना के हस्ती ही मिट गयी
की फिर से जीने को उम्मीद की सौगात चाहिए ...
राज कई दफन है इस इस टूटे हुए दिल में
जो बात सके उनको ऐसा कोई हमराज़ चाहिए ....
दोस्तों की तो महफ़िल सजी थी ,
पर उनके जैसा कोई ना मिला
हमे तो फिर से वही दोस्ती और उनका अंदाज़ चाहिए...
हर शख्स फिक्रमंद है दामन बचाने में
इस जख्मी राहगीर को एक गवाह चाहिए ....
अब शामे ज़िन्दगी में उनकी कमी खलने लगी
मिल जाए जिन सवेरो में वो उस खुबसूरत
दिन का हमें तो आगाज चाहिए.........................
क्या खोया क्या पाया अब हिसाब चाहिए
सब्र का बाँध टूट गया बिखरने लगे किनारे
जो समेट ले सैलाब को अब वो हाथ चाहिए ...
झुका गए इतना के हस्ती ही मिट गयी
की फिर से जीने को उम्मीद की सौगात चाहिए ...
राज कई दफन है इस इस टूटे हुए दिल में
जो बात सके उनको ऐसा कोई हमराज़ चाहिए ....
दोस्तों की तो महफ़िल सजी थी ,
पर उनके जैसा कोई ना मिला
हमे तो फिर से वही दोस्ती और उनका अंदाज़ चाहिए...
हर शख्स फिक्रमंद है दामन बचाने में
इस जख्मी राहगीर को एक गवाह चाहिए ....
अब शामे ज़िन्दगी में उनकी कमी खलने लगी
मिल जाए जिन सवेरो में वो उस खुबसूरत
दिन का हमें तो आगाज चाहिए.........................
गुरुवार, 15 मार्च 2012
लगे कभी
लगे कभी सब कुछ पाया सा , कभी लगे सब खाली सा
इक सोच में डूबी रहती हू, खुद से ही झगड़ती रहती हू
घुटनों पे अपने सर को टिकाकर, जाने कहा विचरती हू
कभी लगे सब सच्चा सा, कभी लगे सब कहानी सा
मेरा अतीत मेरा पीछा जाने क्यूँ नहीं छोड़ता
मुरझाये हुए इस फूल को क्यूँ कोई नहीं तोड़ता
कभी लगे होठों की हँसी कभी आखों में पानी सा
इंतज़ार है अब तो बारिश का के शायद खुल के रो पाऊ
मिला नहीं जो मेरा था के शायद अब उसको खो पाऊ
कभी लगे के उम्र बीत गयी कभी लगे जवानी सा
बहार आई तो सहम गया मन के अब पतझड़ भी आएगा
मिली आज जो खुशियाँ है कल कोई और छीन ले जाएगा
कभी संभलते हुए कदम तो कभी दिल की मनमानी सा
यादों के बादल हर दिन और हर पल घटाओं से छा जाते है
सूखी गालो की धरती को वो अक्सर भिगों कर जाते है
कभी गौतम के सधे कदम तो कभी हाल मीरा दीवानी सा
ऐसे खुद को रोज समझाना बना कर कोई नया सा बहाना
खुश हू मै उसके बिना नहीं उससे अब कोई भी याराना
कभी लगे दिलासा है कभी लगे खुद से ही बेईमानी सा
प्रीती बाजपेयी
इक सोच में डूबी रहती हू, खुद से ही झगड़ती रहती हू
घुटनों पे अपने सर को टिकाकर, जाने कहा विचरती हू
कभी लगे सब सच्चा सा, कभी लगे सब कहानी सा
मेरा अतीत मेरा पीछा जाने क्यूँ नहीं छोड़ता
मुरझाये हुए इस फूल को क्यूँ कोई नहीं तोड़ता
कभी लगे होठों की हँसी कभी आखों में पानी सा
इंतज़ार है अब तो बारिश का के शायद खुल के रो पाऊ
मिला नहीं जो मेरा था के शायद अब उसको खो पाऊ
कभी लगे के उम्र बीत गयी कभी लगे जवानी सा
बहार आई तो सहम गया मन के अब पतझड़ भी आएगा
मिली आज जो खुशियाँ है कल कोई और छीन ले जाएगा
कभी संभलते हुए कदम तो कभी दिल की मनमानी सा
यादों के बादल हर दिन और हर पल घटाओं से छा जाते है
सूखी गालो की धरती को वो अक्सर भिगों कर जाते है
कभी गौतम के सधे कदम तो कभी हाल मीरा दीवानी सा
ऐसे खुद को रोज समझाना बना कर कोई नया सा बहाना
खुश हू मै उसके बिना नहीं उससे अब कोई भी याराना
कभी लगे दिलासा है कभी लगे खुद से ही बेईमानी सा
प्रीती बाजपेयी
बुधवार, 8 फ़रवरी 2012
Sawalo k Ghere se
Neend nahi fir aakhon me,kya jaane kaisi uljhan hai...
kya khyal hai fir tera koi ya raat hi meri dushman hai...
ehsaas hai tera k hai teri yaade ya meri hi koi dhadkan hai...
fazaao me hi thandi aaj hai jyada ya mujhme hi sirhan hai...
tasveer hai ye teri koi ya mere aagey hi koi darpan hai.
geeto me hai koi saaj chida ya chuppi me hi koi sargam hai..
khafa hu mai tujhse ya mere wajud se hi meri anban hai..
haq hai kya khud pe mera bhi ya sirf tera hi ye tan man hai
resham sa naram par chot hai pathar si jane kaisa apnapan hai...
kategi ye patang bhi ab ya iska bhi aasman se gathbandhan hai..
Preeti
शनिवार, 21 जनवरी 2012
MERA HAQ...............
Sannate ki aahat pe kuch ghabarayi hui hu..
mai khauf bichadnei ka dil se lagaye hui hu...
kuch waqt ne bichaayi hai bisaat is baar..
kya hoga gar fir se milegi mujhe haar...
ujaalo ki laau me kahi andhera sa hai..
raat ki syaah me na koi savera sa hai...
fir rone ko kyo dil chaah raha hai...
har koi kyu mujhse bhaag raha hai...
jaise ye rang meri zindagi se bhaaga...
rango ki keemat ka hua hai andaaza...
khud k doglepan se ab hoti hai nafrat...
kyu hu mai aisi aur kyu hai meri aisi fitrat...
koi hume sukun dila do ya thoda sa jahar khila do
ulajhti hui zindagi se gar dila sako to raahat dila do
mujhe bas haq dila do mera mujhpar.. preeti
गुरुवार, 12 जनवरी 2012
SABSE PYAARA BANDHAN
Ek rista hai pyaara sa, komal sa aur nyaara sa...
isme kisi ki jeet nahi hai,isme kisi ki haar nahi...
ladtey hai hum aapas me par ye koi takraar nahi...
dil se dil ka mail anokha, jisne diya kabhi na dhokha..
Aesa laad na kisi ki aakho me, aur esa kahi dulaar nahi..
bachpan me jo bada rulaata, ab aasu mere dekh naa pata
saarobaar kar de khusiyon se, is jaisi koi bauchaar nahi...
pahle to ye daat lagaye, gar ro du to ye pachtaaye....
jitna rangeen ye rista hai., utna holi ka tyohaar nahi....
mummy se meri chugli lagaye, papa k kahar se mujhe bachaye
kahta tha aksar chede koi bahna ko, koi esa barkhurdaar nahi...
mujhse lipat kar roya tha, bola kuch u k sab khoya tha....
khush rahna sasuraal me jakar, ab tera ye ghar baar nahi...
aaj zamaane beet gaye, bachpan k sangeet gaye
bhai bahan ka hai pyaar wahi , wo bhale riwaaz au reet nahi
badle dastur zamane k ho, par mera to ghar baar wahi hai
na badla jo zamane me ab tak, bhai tera pyaar wahi hai........
love u alot my bhai..........u really made me feel proud ...........
love u alot my bhai..........u really made me feel proud ...........
Zindagi se..........
chand lamho ki khusiya ukeri hai
fir kismat ne mere haathon me.....
zindagi ab inka hisaab rakhna shuru kar de,,
bardaast na hogi meri hasi tujhko,ab fir se
tu nayi lakire taraashana shuru kar dey........
Par meri bhi ye baat samajh le,
mere har jazbaat samjh le....
k tu bhi ye ibadat kark dekhna kabhi,
kisi ki hasi pe mar k dekhna kabhi..
apni hasi kisi ko deker dekhna kabhi,
kisi k dard lekar dekhna kabhii...
kitna sukun hai dil ki aisi adla badla me,
k tu bhi ye kar dekhna kabhi...
mai kahti hu tujhse pure aitbaar k saath,
ki tujhe bhi duniya badli hui najar aayegi
tum bhi kisi ka haath thaam kar dekhna kabhi..
apne napak mansube badal k dekhna kabhi...
ye jo sitam aashiqo pe dhaati ho tum..
unki haar pe kaise muskuraati ho tum..
k tum bhi aaukaat me aa jaogi ek din.
jara paakar kisi ko khokar dekhna kabhi........preeti
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