वो रोटी कमाना भी जानती हैं, और बनाकर खिलाना भी जानती हैं।
वो कपड़े बनाना भी जानती हैं और धुलकर पहनानना भी जानती हैं।
वो जमी खरीदना भी जानती है और चुनकर घरौंदा बनाना भी जानती हैं।
वो अश्कों को छुपाना भी जानती हैं और रोते हुए मुस्कुराना भी जानती हैं।
वो रिश्तों को बनाना भी जानती हैं और बनाकर उन्हें निभाना भी जानती हैं।
वो ख्वाहिशों को दबाना भी जानती हैं और मुश्किलों को हराना भी जानती हैं।
सही कहता है जमाना कि वो स्त्री है, वह सब जानती हैं और वो कुछ भी कर सकती हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें