एक कहानी वही पुरानी गुजरा हुआ वही एक जमाना
दरख्तों से झाकती वही दो आँखे ख्वाब वही घायल सा उनमें पुराना
वही बेघर परिंदे साख दर साख और बिखरे हुए पीले पत्ते पतझड़ के
वही फुटपाथ पर सोती गरीबी वही सर्द में कांपती साँसे
वो उधर आज भी भूखा सो गया इधर फिर कोई बेआबरू हो गया
अनशन, मोमबत्तियां, भी वही निर्भया, ज्योति, दामिनी भी वही
वतन की सूरत उतनी ही बदसूरत सी किसान फिर भूखा ही मौत की नींद सो गया
बदला हुआ सा कुछ भी तो नहीं लगता तो फिर नया क्या और क्या पुराना हो गया |||
1 टिप्पणी:
बेहतरीन प्रस्तुती, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
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