बुधवार, 23 जनवरी 2013

दरिया है आखों में फिर भी कोई ख्वाब जलता है ..


ये मंजर भी बड़ा ही दिलचस्प और नायाब है 
दरिया है आखों में फिर भी कोई ख्वाब जलता है ..

भूल तो गया उसका साया भी उसको यहाँ 
हैरानी की बात है,कोई है जो परछाई सा चलता है ...

किस्मतों  की साजिश होगी के यादाश्त गयी उनकी 
वरना गरीबो में भी कही कभी कोई राजा पलता है ...

मुस्तकिल खुशमिजाजी का न अफ़सोस कीजिये 
उसके चेहरे पर  भी रोज कुछ शाम सा ढलता है....

गिरता उन्हें देख भूल गये जोर से ठहाके लगाने वाले   
बचपन में गिरे थे कई बार तभी आज कदम संभलता है....

पत्थर से है हालात तो क्या कोशिश कर के देखेंगे  सुना है के इस जहाँ में आग से वो लोहा भी पिघलता है... 

तुम यूं ही न रहोगे सदा न हम रहेंगे ऐसे ही,
वक़्त ही तो एक ऐसा है जो सभी का बदलता है ....
प्रीती 

मंगलवार, 15 जनवरी 2013