त’अज्जुब न कर मेरी मेरी नजाकत पर तू
मै बेदर्द नदी हूँ वो, जो पत्थर भी काट दूँ !!
फजल का हमारी ये भी नमूना देखिये कि
आब-ए-चश्म उसकी बातों में ही झांक लू !!
इफ़्फ़त के नाम पर बार- बार परखा मुझे
नाकस लोगो मै तुमसे अपना हिस्सा आज लूँ !!
खैर ये बाते तो सिर्फ कहने के खातिर ही होती है
दो लफ्ज तेरे अत्फ़ के, औं मै हर ख़ुशी तुझसे बाट लूँ !!
तू इकबाल कर दे अगर इखलास का अपने
बावरी मोरनी बन कर मै आज नाच लूँ !!
प्रीती
( फजल= टैलेंट , आब-ए-चश्म = आसूं, इफ़्फ़त = सतीत्व, नाकस= घटिया, अत्फ़ = प्रेम , इख्लास = प्यार, इकबाल= इकरार, )
10 टिप्पणियां:
Well framed :) loved it
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन खुशियाँ दो, खुशियाँ लो - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत सुंदर गज़ल। और धन्यवाद कि कठिन शब्दों के अर्थ भी दे दिये।
than you!!!
dhnyawaad aapka ...
शुक्रिया शुक्रिया तहे दिल से आपका !!!
सुंदर :)
बहुत से नये उर्दू अल्फ़ाज़ जानने को मिले... :)
ख़ुशी हुई जानकार ....धन्यवाद ब्लॉग पर पधारने के लिए | आते रहिएगा प्रोत्साहन हेतु
रायबरेली *** मुन्नव्वर राणा साहब की कर्म भूमि .. और शायद मातृ भूमि ..! और जैस उनको वरदान माँ गंगा से प्राप्त हुआ वही देख रहा हूँ .. हर शेर कबिले आह...! हुआ फिर ... हुआ वाह ! गजब !
लेखनी सूरत भी सार्थक तब होती है जब पाठक बस .. आह! करके कहे .. वाह ! .. गजब कहा ..
वही हाल हुआ इसे पढते हुये .. खूब .. बहुत ही खूब !
छपने भेंज दूँ ?
वाह !!! बहुत ही सुंदर एवं सारगर्भित रचना...
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