रविवार, 26 मई 2013

वही गुलाब का फूल

आज हाथ पड़ गया अचानक ही 
उन सूखी पुरानी यादों पर 
जो किताब के पन्नो के बीच में 
अपनी महक समेटे बैठी थी 
हाँ  ये वही गुलाब का फूल है!! 
मुझे याद है आज भी वो शाम 
जब ये मेरे बालों में तुमने 
अपने हाथों से सजाया था 
और मै बस शरमा कर 
वही सिमट सी गयी थी 
जिसे मैंने माँ से छिपा 
के किताबों में तो कभी 
कपड़ो के बीच में रखा था 
जिसे मैंने कभी आँखों पे तो
 कभी दिल में सजाके रखा था 
जिसने मेरा जीवन काटों से 
सजाकर  रख दिया 
मेरी मासूम से ख्वाहिशों को 
जिसने जलाकर  रख दिया 
मुझे देखकर अचानक से 
जब तुमने नज़रें चुरायी थी 
भीड़ में थी मै खडी हुई
पर क्यूँ चारों तरफ तन्हाई थी 
तब का दिन था और आज का दिन है 
अरसे बाद आज तुम मेरे साथ हो
और हाँ  वही गुलाब का फूल भी है !!! प्रीती