लहर चाहती है मिलना जिनसे
बस वही किनारे नही मिलते
बाकी मिलने को उससे सारे
के सारे बवंडर चले आते है ....
तुम ना आओ, तनहा फिर ये शाम सही
हम तक पहुचती तेरी ख़ामोशी का पैगाम सही
पंहुचा देती है मुझ... तक जो सदा तेरी
उन हवाओ के कर्जदार हुए जाते है ....
गूंजते थे जहा हँसी के ठहाके
वही अदब से अब मुस्कुराते है
देखते ही देखते कितने ही घर
ओहदों में सने मकां हुए जाते है....
तमाम उम्र जलाते रहे जो
साँसों को कागज की तरह
रो -रो के आज बेटे वही
पिता को मुखाग्नि दिए जाते है....
चलो छोडो क्या रखा है इन बातों में
बाते ही तो है आज के इस दौर में
जिसे भूख लगने पे लोग खाते है
औ प्यास लगने पे पिए चले जाते है .. preeti
5 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन आज की बुलेटिन, ज़ोहरा सहगल - 'दा ग्रांड ओल्ड लेडी ऑफ बॉलीवुड' - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
.. कोमल अहसासों को पिरोती हुई... दिल की गहराईयों को छूने वाली बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
बुत खूब .... अच्छी आगी आपकी रचना ...
गूंजते थे जहा हँसी के ठहाके
वही अदब से अब मुस्कुराते है
देखते ही देखते कितने ही घर
ओहदों में सने मकां हुए जाते है.... Bahut khub....
खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर भावप्रवण रचना. आभार.
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