शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

कुछ तन्हा से ख्याल...

लहर चाहती है मिलना जिनसे 
बस वही किनारे नही मिलते 
बाकी मिलने को उससे सारे 
के सारे बवंडर चले आते है ....


तुम ना आओ, तनहा फिर ये शाम सही 
हम तक पहुचती तेरी ख़ामोशी का पैगाम सही 
पंहुचा देती है मुझ... तक जो सदा तेरी 
उन हवाओ के कर्जदार हुए जाते है ....


गूंजते थे जहा हँसी के ठहाके 
वही अदब से अब मुस्कुराते है 
देखते ही देखते कितने ही घर 
ओहदों में सने मकां हुए जाते है....

तमाम उम्र जलाते रहे जो 
साँसों को कागज की तरह 
रो -रो के आज बेटे वही
पिता को मुखाग्नि दिए जाते है....

चलो छोडो क्या रखा है इन बातों में 
बाते ही तो है आज के इस दौर में 
जिसे भूख लगने पे लोग खाते है 
औ प्यास लगने पे पिए चले जाते है .. preeti

5 टिप्‍पणियां:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन आज की बुलेटिन, ज़ोहरा सहगल - 'दा ग्रांड ओल्ड लेडी ऑफ बॉलीवुड' - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

संजय भास्‍कर ने कहा…

.. कोमल अहसासों को पिरोती हुई... दिल की गहराईयों को छूने वाली बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बुत खूब .... अच्छी आगी आपकी रचना ...

Arshad Ali ने कहा…

गूंजते थे जहा हँसी के ठहाके
वही अदब से अब मुस्कुराते है
देखते ही देखते कितने ही घर
ओहदों में सने मकां हुए जाते है.... Bahut khub....

संजय भास्‍कर ने कहा…

खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर भावप्रवण रचना. आभार.