रविवार, 30 अगस्त 2015

WO EK LADKI .....

यूं हाथों से  झटका था उसने मिटटी को
मानो किस्मत की लकीरे फेक दी हो जमीन पर
कोई शर्त मनो लगा बैठी थी खुद से उसने कि
 इश्क़ के गर्त में सब कुछ हारकर ही जीतेगी
स्याह रातों का काजल भरती  है आँखों में
और आसुंओ से धुलती है चेहरा हर रात
ख़ामोशी उसके खनखनाते शब्दों में ,
और हसी में उसकी, उसके बिखरे हुए ख्वाब। 

कुचलकर  खुद को ही  बस रोज चल रही
अपनी ही लगायी हुई आग हर रोज जल रही
तलाशती है खुद की ही परछाई साथ पाने को
हर रात आंखोंं में उसकी चीखे पिघल रही ।

एक जहर सा पीकर जिए जा रही है
जिंदगी से साँसों का वादा निभा रही
कोई सर पर प्यार से हाथ ना रख दे
इस ख्याल से भी रूह उसकी घबरा रही ।

मुझे परवाह नहीं उसकी और ज़माने की
मेरी जिंदगी तोह मजे में जा रही
उसका काम वो जाने और उसकी यादें
हमे तोह अब गहरी नींद आ रही :)


1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहद खूबसूरत एहसासों से भरा गीत ,एक एक पंक्ति कबीले तारीफ है.