मंगलवार, 19 मार्च 2013

तोहफा ......

तुम खामखाँ  तकल्लुफ्फ़ करते हो बोलने का
मै तुम्हारी ख़ामोशी से भी लफ्ज़ तोड़ लेती हूँ !!
ये रस्मो रिवाज दुनिया के खातिर रख संभाल  के 
मै जरा अपने नाम में बस तेरा नाम जोड़  लेती हूँ !!
मेरी खुसबू से तेरा पता क्यूँ मिले लोगों को भला
इन गद्दार साँसों से ही मै अपना रिश्ता तोड़ लेती हूँ !!
मत बदल तू , हर बार शहर मेरी यादों के डर से
मेरा तोहफा है तुझे,इस दफे मै ही शहर छोड़ देती हूँ !!
प्रीती


4 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…
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संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह बेहतरीन !!!!

भावों को सटीक प्रभावशाली अभिव्यक्ति दे पाने की आपकी दक्षता मंत्रमुग्ध कर लेती है...

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - आर्यभट्ट जयंती - गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, वैज्ञानिक (४७६-५५० ईस्वी ) पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

Misra Raahul ने कहा…

बहुत खूबसूरत.....!!!