बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

अश्कों से भीगी वो चांदनी

अश्कों से भीगी वो चांदनी रात भर भिगोती रहीं
जागती रही कोई दो आँखें और ये दुनिया सोती रही !!

हाथों में हाथों को लेकर जब वो बैठे थे यही .
लब भी ना हिले थे और ना जाने कितनी बातें होती रही !!
अपनी अलग दुनिया, अपना अलग आसियाना
तुझे  देख कर खुद बखुद पलकों का झुक जाना !!
तेरे काँधे पे रख के सर  कितने ही ख्वाब पिरोती रही

पर क्या पता था कि शीशे से ये ख्वाब हमेशा टूट जाते है
अक्सर बेगाने अपने बनकर तुमसे सब कुछ लूट जाते है !!

वो रातें जो तुम्हे बिना बात के हँसना  सिखा  देती है
वो खवाब जो पलकों पे शामियाना बना लेती है!!

एक शख्स के चले भर जाने से कैसे रूठ जातें है
हम हसतें हसतें  रोते है, और रोते रोते मुस्कुराते है !!

और वो चांदनी इन ख्यालो से ऒस की बूंदें संजोती रही
जागती रही कोई दो आँखें और ये दुनिया सोती रही !!
प्रीती 

12 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ती ... पाठक यदि किसी एकाकीपन से व्यथीत रहा तो , पक्का जानिये रो ही देगा ..

गहरे ख्याल हर पंक्ती में अहिस्ता अहिस्ता उतर रहे हैं ..

मर्मस्पर्शी लेखन !
: एहसास

Neeraj Neer ने कहा…

बहुत खूब . दिल को गहरे तक स्पर्श करती सुन्दर प्रस्तुति.
नीरज 'नीर'
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा): धर्म से शिकायत

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज के ब्लॉग बुलेटिन पर |

Dr. Preeti Dixit ने कहा…

दिल से आभार आपका !!!!!रचना को सराहने के लिए एवं इसे औरों के साथ साझा करने के लिए !!!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मर्मस्पर्शी ...
भावपूर्ण रचना ...

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

बेहतरीन ....

Dr. Preeti Dixit ने कहा…

आभार !!!!!

Dr. Preeti Dixit ने कहा…

धन्यवाद आपका दिल से प्रोत्साहित करने क लिए !!!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

सोचा की बेहतरीन पंक्तियाँ चुन के तारीफ करून ... मगर पूरी नज़्म ही शानदार है ...आपने लफ्ज़ दिए है अपने एहसास को ... दिल छु लेने वाली रचना ...!!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

धीरेन्द्र अस्थाना ने कहा…

achi rchna :)

Unknown ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (25-05-2014) को ''ग़ज़ल को समझ ले वो, फिर इसमें ही ढलता है'' ''चर्चा मंच 1623'' पर भी होगी
--
आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर