शनिवार, 24 मार्च 2012

नैन परिंदे


नैन परिंदे ख्वाबो के लगा  पर अब नींद के बादल पर उडते है 
अंधियारे और उजियारे में वो ख्वाब का दाना चुगते है ...

इक पेड़ मिला फिर हरा भरा सा और इक सुखी टहनी भी 
गुजरे कल के कुछ सूखे पत्ते और कोपलें नए कल की सहमी भी 

आसूं की ओस का गीलापन और वक़्त की लूँ की गर्मी भी 
रंग बदलती ज़िन्दगी से वो नैन परिंदे मिलते है ...



कही बिछड़ने के  तूफ़ान थे तो कही मिलन की सर्दी भी 
छूटते हुए  कुछ हाथो का नशा और नए कदमो के चहलकदमी भी 

पतझड़ के जाने  का था अंदेशा बहारो के आने की गहमागहमी भी
उम्मीद की सुखी टहनी पर फिर प्यार के मौसम खिलते है....

बदली हुई सी फजां की रंगत रेशम सी हवा की नरमी भी
कलियों की शर्मीली शोखी भवरो की वो सरगर्मी भी 

नादान दिल की हसरत और खामोश लफ्जों की बेरहमी भी 
घास फूस की यादें लेकर फिर नया घरौंदा बुनते है ....

नैन परिंदे ख्वाबो के लगा  पर अब नींद क बादल पर उडते है.
अंधियारे और उजियारे में वो ख्वाब का दाना चुगते है .   

    प्रीती बाजपेयी

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